सुभाष धूलिया
पाकिस्तान अपने इतिहास में हमेशा से ही संकटग्रस्त रहा है और इसका हर संकट पहले के संकट से अधिक गहरे होते चले गए. आज का संकट तो ऐसा है कि यहाँ तक कहा जा रहा है की पाकिस्तान एक विफल राज्य की और अग्रसर है जहाँ कानून का राज ख़त्म हो जाता है और सिविक सोसायटी और हर जनसंघठन अस्तित्वविहीन हो जातें हैं . सलमान रश्दी ने तो यहीं तक कह डाला के पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कर दिया जाना चाहिए . पाकिस्तान के भीतर ही कहा जा रहा है कि अब अमेरिका का अगला निशाना पाकिस्तान का सैनिक प्रतिष्ठान और इसके नाभिकीय हथियार होंगे . यह आशंका कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि हाल ही मैं पाकिस्तान के प्रधान मंत्री गिलानी ने संसंद को संबोधित करते कहा कि पाकिस्तान की "सामरिक सम्पतियों" के ध्वस्त करने के प्रयास का मुहंतोड़ जवाब दिया जायेगा.
पाकिस्तान की संसद के संयुक्त अधिवेशन में सैनिक खुफिया एजेंसी के प्रधान जनरल पाशा ने सेना का पक्ष रखा. संसद ने सेना और ख़ुफ़िया एजेंसी पर अपना पूरा विश्वास जताया और एक प्रस्ताव पास कर पाकिस्तान में इस तरह के सैनिक कार्रवाई दुबारा होने के स्थिथि में गंभीर परिणामों के चतावनी दी और यहाँ तक कहा है की ऐसी किसी भी कार्रवाई के पूरी दुनिया के लिए विनाशकरी परिणाम होंगे -क्या पाकिस्तान अपने आप को आतंकवाद से साफ-सुथरा करने के बजाय नाभिकीय युद्ध के धमकी दे रहा है ? अब तक पाकिस्तान भारत के साथ नाभिकीय ब्लैकमेल का सहारा लेता रहा और आब पूरी दुनिया को धमकी दे डाली है. इस तरह का नाभिकीय ब्लैकमेल संकटग्रस्त पाकिस्तान को काफी भरी पड़ सकता है. . पाकिस्तान संसद सरकार , सेना और कुख्यात आई एस आई के रुख से लगता है के सैन्य प्रतिष्टान पर अमेरिका का निशाना एक वास्तविक सम्भंवना है.
पाकिस्तानी संसद ने सरकार को अधिकार दिया है के वह अफगानिस्तान में नाटो -अमेरिके सेना पाकिस्तान के रास्ते होने वाली को सोजो-सामान की आपूर्ति बंद कर सकती है. अमेरका अफगान युद्ध के लिए पाकिस्तान के रास्ते होने वाली आपूर्ति पर पूरी तरह निर्भर हैं. ओसामा के पाकिस्तान में होने के कारण पहले ही पहले हे अमेरिका में पाकिस्तान को लेकर बहुत नाराजगी है और पाकिस्तान को दी जाने वाली अरबों डॉलर के मदद में कटोती के मांग उठ रही है. ऐसे में आपूर्ति का रास्ता बंद करने की धमकी एक अधकचरे नेतृत्व को ही अधिक उजागर करता है. पाकिस्तान को तो उन तमाम देशों से माफ़ी मागनी चाहिए जिन पर इसकी धरती से आतंकवादी हमले हुए हैं.
एक बार जब पाकिस्तान में अमेरिका -विरोधी इस्लामी उग्रवाद इतने चरम पर था और पाकिस्तान सरकार इस पर नियंत्रण करने में असमर्थ सी दिख रही थी तब भी खबरें थीं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में विशेष दस्ते तैनात कर दिए हैं जो जरुरत पड़ने पर पाक नाभिकीय हथियारों पर नियंत्रण कायम कर लेंगे. अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया में ये डर रहा है की कहीं आतंकवादियों के हाथ नाभिकीय हथियार न आ जायें और जब भी ये आशंका होती है, हर निगाह पाकिस्तान की तरफ जाती है . पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश हैं जिसे नाभिकीय स्मगलर का ख़िताब मिला है . और पाकिस्तान ही दुनिया कि एकमात्र ऐसी नाभिकीय शक्ति है जो इन विनाशकारी हथियारों के प्रयोग करने कि धमकियाँ देती है . एक ऐसे कमजोर और नेतृत्वविहीन देश के नाभिकीय हथियार दुनिया के लिए खतरा बन रहे हैं. ऐसे मैं ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान के सैनिक और ख़ुफ़िया तंत्र के तले पाया जाना पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी हैं.
लादेन का मारे जाने के प्रतीकात्मक अर्थ अधिक हैं. आखिर वह आंतकवादी युद्ध के मैंदान मे 'सेना' का नेतृत्व नहीं कर रहा था, बल्कि एक कोने में छिपा अपनी जन बचा रहा था. पाक-अफगान भूभाग में धार्मिक उग्रवाद के जड़ों व्यापक और घहरीं हैं और पाकिस्तान का मौजूदा रुख इस पर अंकुश के लिए अनुकूल नहीं है जब कि इसकी सबसे बड़ी मार पाकिस्तान पर ही पड़ रही हैं और पड़ने जा रही है . अफगान सीमा पर स्थिस्ति लगातर बिगड़ रही है . लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने पर अफगान राष्ट्रपति करज़ई ने कहा की इससे उनकी ये बात सही साबित हो गयी हैं की आतंकवाद से लड़ने के लिए उनके देश के गाँव और गरीवों के खिलाफ युद्ध निरर्थक है और आतंकवाद का असली गढ़ पाकिस्तान हैं और युद्ध वहां छेड़ा जाना चाहिए. अफगान सीमा पर रोजमर्रा अमेरिकी ड्रोन हवाई हमलें हो रहे हैं . पाकिस्तान की प्रभुसत्ता मजाक बनकर रह गयी है. बलूचिस्तान विद्रोह के कगार पर है . भारी सैनिक व्यय से शिक्षा-स्वस्थ जैसे सामाजिक क्षेत्र हासिये पर चले गए हैं. सत्ता का कोई एक केंद्र नहीं है . सिमित लोकतंत्र के नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ मैं है जिंसी न कोई साख हैं और न हे कोई खास जनाधार है सिविक सोसाइटी और अन्य जन संगठन धार्मिक उग्रवाद के जबड़ों मैं फंसे हैं . नब्बे के दशक मैं अफगानिस्तान पर प्रभुत्व कायम करने के लिए पक्सितन ने तालिबान को खड़ा किया और 9 / 11 के बाद ये राजनितिक निवेश ध्वस्त हो गया. आज पाकिस्तान के पास कोई अफगान रणनीति नहीं है. करज़ई तालिबान के एक तबके से साथ सुलह करने मैं लगे हैं. पाकिस्तान हक्कानी गुट के साथ मिलकर विकल्प बनाने मैं लगा है और लादेन के मरे जाने के एकदम बाद अमेरिका ने हक्कानी गुट पर पावंदी लगा दी है. जुलाई मैं अमेरिका अफगानिस्तान से हटना शुरू कर देगा और 2014 तक पूरी तरह हट जाने की योजना है . इस बीच अफगानिस्तान में नयी सत्ता का निर्माण होना है और पाकिस्तान अलग थलग पड़ रहा है. अफगानिस्तान में अब तक भारत पुनर्निर्माण के कार्यों पर हे केन्द्रित रहा है ओरे अफगानिस्तान राजीनीतिक प्रक्रिया से अलग रहा या रखा गया . खुद अमेरिका ने पाकिस्तान को खुस रखने के लिए भारत को इससे अलग रखा. अब कुछ बदलता दिख रहा है और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह अभी अभी अफगानिस्तान की एक सफल यात्रा से लौटें हैं.
पाकिस्तान में मौजूद विशाल आतंकीतंत्र जिसे पाक सैनिक और आई यस आई के प्रभावशाली तबकों का संरक्षण प्राप्त है जिनके बदौलोत लादेन इतने वर्षों तक वहां छिपा रहा . अब अमेरिका पाकिस्तान को किस रूप मैं अफगान राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल रखना चाहेगा ? भारत ने लादेन के मरे जाने पर एक संतुलत रुख अपनाया और पाकिस्तान-विरोधी उन्मादीयों को दरकिनार रखा . इससे पाकिस्तान का परपरागत भारत-विरोधी हथियार भी जाया हो गया. अब इस देश के पास क्या विकल्प हैं? पाकिस्तान में ऐसी कौन से सत्ता है जो इस देश को नेतृत्व से सके? एक संकटग्रस्त देश नेतृत्वविहीन है मौजूदा पाकिस्तान पूरी दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है.
दुष्ट मानसिकता के दैत्य-दानव-राक्षस आदि भौतिक शक्ति अर्जित कर लेने में निपुण हुआ करते थे । देवों और शक्तियों की आराधना से प्राप्त वरदान का वे कभी सदुपयोग नहीं कर सके । पाकिस्तान जैसे देश अपनी नाभिकीय शक्तियों का दुरुपयोग ही कर सकते है । सम्भव है कि इस बार दुनिया का ख़ात्मा पाकिस्तानी फ़िदायीनी मानसिकता से हो ।
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